भिंड। नईदुनिया प्रतिनिधि संसार का प्राणी तरह-तरह के पापों मे आकंठ डूबा है। सब कुछ प्रत्यक्ष देख रहा है, फिर भी उसके जीवन में बदलाव नहीं आता। व्यक्ति उपदेशों को सुनकर कानों तक रखता है। हृदय तक नहीं पहुंचा पाता। यही कारण है कि उसके जीवन मे अनवरत पाप होते रहते हैं। हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पांचों के सात महापाप है। यह बात शहर में बतासा
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