नीलगिरी की अधिकांश जनजातीय भाषाओं की लिपि नहीं है। कनगराजन को अपनी भाषा और संस्कृति से विशेष लगाव है।
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इस शख्स ने कोटा जनजाति की भाषा को बचाने के लिए लिखी लिपि
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